किसी भी उद्यम को ढंग पूर्वक चलाने के लिए उसमें प्रतिदिन एक नई रचनात्मकता की आवश्यकता होती है वरना आपको उद्यम में कठिनाई और विफलता का सामना करना पड़ सकता है। यदि आपके ग्राहकों की संख्या दिन-ब-दिन घटती जा रहीं हैं ,आपके कर्मचारी आपके उद्योग को छोड़कर जा रहे है ,आपको आर्थिक रूप से परेशानी हो रही है और अगर आप यह समझने में असमर्थ है कि आखिर कैसे बढ़ती प्रतिस्पर्धाओं का सामना किया जाए तो यह समझ जाएं कि आप अपने उद्योग को विफलता के मार्ग पर चला रहे हैं।
नवाचार और उद्यमिता एक दूसरे से जुड़े हुए है। आज कल के युवाओं में नवाचारों की बिलकुल भी कमी नहीं है।अधिकतर विद्यार्थियों में कम उम्र से ही रचनात्मकता का विकास होने लगता है। अगर हम विद्यार्थियों को उनकी इच्छानुसार ही पढ़ने का मौका दें तो यह उनकी रचनात्मक कला निखारने में हमारा सहयोग होगा। जब विद्यार्थी और युवा वर्ग नवाचार की तरफ बढ़ेगा तो देश में उद्यमिता का फैलाव संभव है और अगर वही विद्यार्थी दिन भर अपने पाठ्यक्रम और विषयों के अभ्यास में ही उलझे रहे तो फिर उद्यमिता और नवाचार का विकास असंभव है।
विद्यार्थी का पाठ्यक्रम किन्हीं विषयों से नहीं बल्कि दैनिक जीवन की समस्याओं के हल निकालने की क्षमता से संबंधित होना चाहिए। विद्यार्थियों के लिए एक ऐसा पाठ्यक्रम निर्धारित हो जिसमें वे अपनी भाषा कौशल ,गणितीय कौशल और वैज्ञानिक कुशलता के आधार पर तमाम समस्याओं के लिए उचित समाधान प्रस्तुत करे तथा इन्ही श्रेष्ठ समाधानों के आधार पर विद्यार्थी की प्रतिभा को प्रोत्साहन मिलना चाहिए और उसका आगे की प्रतियोगी परीक्षाओं में चयन होना चाहिए। उसी प्रकार, प्रत्येक उच्च शैक्षिक संस्थानों जैसे IIT और IIM में विद्यार्थी का चयन उसकी नवाचार और उपरोक्त कौशल के आधार पर होना चाहिए। जब सृजनशील विद्यार्थी वर्ग की तादाद बढ़ जायेगी तभी देश की समस्याओं का समाधान हो पायेगा न कि पुनरीक्षण आधारित इस शिक्षा पद्धति के उपयोग से।
जब युवाओं के भीतर रचनात्मकता और नवाचार विकसित होंगे तब किसी भी उद्यम में असफलता नहीं प्राप्त होगी। एक सृजनशील उद्यमी को अगर एक काम में हानि प्राप्त होती है तो वह दूसरा काम शुरू करके उसमे लाभ कमा सकता है। उद्यम तभी सफल होता है जब समाज की आवश्यकताओं के अनुसार आप अपने कार्य को परिवर्तित कर सकें। और यह कार्य एक नवाचारों और रचनात्मकता से परिपूर्ण उद्यमी ही कर सकता है।