जब बैंक से ऋण लेते हैं तब बैंक व ऋणी के बीच, भारतीय अनुबंध अधिनियम 1872 के तहत करार होता है कि ऋणी उल्लेखित शर्तों के अनुसार नियत किस्त के माध्यम से तय अवधि में ऋण चुकता कर देंंगा । ऐसा न करने पर ऋण खाता अनियमित हो जाता है और बैंक को देय राशि वसूल करने के लिए कानूनी कार्यवाही करना अधिकार प्राप्त हो जाता है ।
तो सबसे पहले बैंक ऋणी को, व्यक्तिगत संपर्क/ सामान्य नोटिस के माध्यम से ऋण खाते की अनियमितता व की जा सकने वाली कानूनी कार्यवाही तथा उसके परिणाम के बारे में जानकारी देगा । स्थिति में सुधार न होने पर बैंक द्वारा वसूली हेतु ऋणी के खिलाफ अदालत में दावा प्रस्तुत किया जायेगा और कानूनी कार्यवाही का समस्त खर्चा ऋणी से वसूल किया जायेगा ।
ध्यान रहे कि ऋणी ने अनुबंध के माध्यम से बैंक से वादा किया था कि वह इस ऋण को नियमित रूप से चुकता कर देंगा, इस अनुबंध के आधार पर ऋणी अदालत में वादा खिलाफी का दोषी पाया जायेंगा ।
यदि बैंक ने किसी तीसरे पक्ष की जमानत भी ले रखी है तो जमानती के खिलाफ भी वसूली हेतु कानूनी कार्यवाही की जायेगी ।
वैयक्तिक ऋण स्वीकृत करते समय बैंक ऋणी से भावी तिथि के चेक भी जमानत के तौर पर प्राप्त करता हैं। ऋण अनियमित होने पर वसूली हेतु चेक प्रस्तुत किया जायेगा और चेक के बिना भुगतान लौटने पर ऋणी के खिलाफ विनिमय साध्य विलेख अधिनियम की धारा 138 के तहतअलग से कानूनी कार्यवाही की जायेगी । इस धारा के तहत जेल और जुर्माने की सजा का प्रवधान है ।
ऋणी व जमानती दोनों की सिबिल रिपोर्ट खराब होगी । दोनोंं भविष्य में किसी भी बैंक से ऋण लेने के अयोग्य घोषित हो जायेंंगे । आज के भौतिक युग में ऐसा होना सबसे बड़ी सजा होगी । क्योंकि बैंक से 12%से 15% वार्षिक ब्याज दर पर व्यैक्तिक ऋण उपलब्ध हो जाता हैं जबकि निजी महाजन से ऋण लेने पर यह ब्याज की यह दर 24% से 36% वार्षिक तक पहुंच जाती हैं।
व्यक्तिगत, धार्मिक, सामाजिक, बैंकिंग व देश के आर्थिक स्वास्थ्य की दृष्टि से लिये गये ऋण की नियमित चुकौती सदैव हितकरी होती है ।