रतन टाटा ने सन २००८ में ₹ 1 लाख रूपये में एक कार को बनाने और बेचने की अपनी महत्वपूर्ण योजना की अनाउंसमेंट की। भारत की ज्यादातर जनता निम्न आय वर्ग की श्रेणी में आती है। भारत में अधिकतर लोगों के लिए कार खरीदना एक सपना मात्र है। भारत में कार खरीदना अब हमारी सामाजिक स्थिति दर्शाता है। कार खरीदना किसी भी व्यक्ति के लिए या विशेष रूप से निम्नवर्ग के लिए एक महत्वपूर्ण बात हो सकती है।
व्यवसाय के क्षेत्र में टाटा मोटर्स के आम जनता को सस्ती व् अच्छी कीमत पर कार उपलब्ध कराने के इसी महत्वपूर्ण कार्य की घोषणा के साथ प्रत्येक वर्ग को उनके सपने साकार होते हुए नज़र आने लगे।
टाटा मोटर्स के इस सराहनीय व् प्रगतिशील कार्य को न केवल ऑटोमोबाइल जगत में अपितु देश-विदेश में भी काफी सराहा गया।
टाटा मोटर्स ने इस कार को प्रत्येक भारतीय के सपनों की कार के रूप में बाजार में प्रस्तुत किया तथा इस कार का काफी प्रचार प्रसार भी किया गया परन्तु शो-रूम से निकल कर जब यह सड़कों पर आयी तब जनता को यह प्रतीत हुआ कि जिस कार को खरीदने के उन्होने सपने देखे थे वो दरअसल "स्मार्ट कार" बनने की बजाय सबसे "सस्ती कार" का प्रतीक बन गयी।
वे भारतीय कार उपभोक्ता के महत्वपूर्ण तथ्यों को जानने से चूक गए:
उसके पड़ोसी या रिश्तेदार उसकी कार के बारे में क्या विचार रखते हैं?
कार उनकी सामाजिक स्थिति कैसे तय करेगी?
जब उपभोक्ता अपने पूरे परिवार को कार में ले जाएगा तो लोग क्या सोचेंगे?
ग्राहक कार को समाज में आर्थिक स्थिति दर्शाने वाला एक उपकरण मानता है।
परिणामस्वरूप , नैनो को एक "गरीब आदमी की कार" या "सस्ती कार" के तौर पर पहचान मिल गयी।
इसलिए लोगों ने नैनो कार खरीदने के बजाय "रॉयल एनफील्ड" जैसी प्रीमियम बाइक खरीदने में ज्यादा समझदारी समझी। यह बाइक उन्हें एक ऊँचा दर्जा दिलाती है व गर्व महसूस कराती है। इस बात का नतीजा यह हुआ कि लाख रुपये से ज्यादा कीमत की बुलेट की बिक्री नैनो कार से ज्यादा हो गयी।
पहली बार कार खरीदने वाला हर एक ग्राहक एक बड़ी गाड़ी खरीदना चाहता है ,भले ही उसे पुरानी गाड़ी क्यों न खरीदनी पड़े। और व्यक्ति के इस तरह के बड़े सपनों को नैनो कार नहीं पूरा कर सकती।